शनिवार, 25 जुलाई 2009

जानू ना गीत की भाषा

जानू ना गीत की भाषा
ना जानू संगीत क्या है होती
अनजान शायरी के लफ्जों से
मै भावनाओं को पिरोती
जो आये आँखों में आंसू
मै कोरे कागज पर रोती
जो होती हु मै खुश
तो मेरी कलम भी हंसती
अपने मन की उडानो को
मै कागज़ पर हु समेटती
जो होता है दर्द मुझे
तो बातें लिखती हु चुभती
जो देखती सपने हर पल
मै उन लम्हों को संजोती
जो रंग फूलों में है
कोशिश कर वो रंग हूँ भरती
मान आधार जीवन को इसका
जो दिल करता लिखती है संगी
अनजान शायरी के लफ्जो से
संगी भावनाओ को पिरोती

0 टिप्पणियाँ:


Blogspot Templates by Isnaini Dot Com and Wedding Bands. Powered by Blogger